Tuesday, November 9, 2010

ज़िन्दगी साली..



ये कोई रोकेट साईंस नहीं है.. ये बहुत ही आसान सी प्रक्रिया है.. शाम के वक़्त झील के किनारे खड़े होंकर रुके हुए पानी में बहुत छोटी छोटी लहरों को देर तक देखना.. अपने चप्पल उतारना.. आसमान की तरफ सुकून से देखना फिर चारो तरफ मुस्कुराते हुए नज़र घुमाना और आँखों को बंद करके एक लम्बी सांस खींच कर अन्दर उतर जाना.. धीरे धीरे घुटनों तक अन्दर उतरना.. फिर कमर तक.. फिर गर्दन तक और अब पुरे अन्दर तक उतर जाना... फिर डूबते जाना.. थोडी देर तक अन्दर शान्ति का एहसास होगा इस दुनिया के तमाम प्रपंचो से मुक्त होंकर ख़ुशी होगी.. पानी में शरीर का इधर उधर हिचकोले खाना आनंद की अनुभूति देगा..  उसके बाद पानी ठंडा लगेगा फिर सांस रुकने लगेगी.. आँखे बड़ी और लाल हो जायेगी.. मुंह सांस लेने की कोशिश में बार बार खुलेगा जिससे कि अन्दर पानी भरता जाएगा.. फिर घुटन बढ़ जायेगी और हाथ पांव छटपटाने लगेंगे.. मुंह से बुलबुले निकलने लगेंगे.. सांस की नली फट चुकी होगी.. अपने किये पर अफ़सोस तो होगा मगर देर हो चुकी होगी..  पानी के बीचो बीच खुली हुई बड़ी आँखे और शरीर में पानी जाने से फुला हुआ शरीर.. थोडी देर में लाश पानी की सतह पर आ जाएगी.. धीरे धीरे यहाँ से वहां पानी में बहती हुई.. लाश और दुनिया के बीच की दूरी अब बढ़ जायेगी.. ज़िन्दगी का गुरुर दो मिनट में टूट जाएगा.. लाश उसके मुंह पर हँसेगी.. ये मौत का तमाचा होगा ज़िन्दगी के गालो पर.. साली अपने आपको बहुत तुर्रम खां समझती थी..  

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