Monday, December 20, 2010

कैमरा एक प्रेमिका है


कैमरा चलता नहीं है वो मूवमेंट करता है.. उसके हर मूव में प्रेमिका की चाल सा नशा होता है.. ट्रोली पर रखा कैमरा जब ऊपर की तरफ उठता है तो यू लगता है जैसे प्रेमिका ने अंगड़ाई ली हो.. क्लोजप शोट मुझे ठीक वैसा लगता है जैसे प्रेमिका बिलकुल करीब आकर होंठो को चूमना चाहती है.. फिर वो अपनी निगाहों को मेरी निगाहों में रख देती है.. मैं नज़रे मिलाता हु वो शर्म से नज़र झुका देती है.. ये लो एंगल शोट है.. उसका सड़क को पार करना मुझे ट्रोली शोट की तरह लगता है.. फिर जब वो सीढियों से दौड़ती हुई छत तक पहुँचती है कि तभी नीचे से शोट लेता हुआ कैमरा ऊपर छत की तरफ बढ़ता है..

कैमरा धीरे धीरे हिरनी की तरह चलता है बिलकुल वैसे जैसे प्रेमिका चलती है.. कैमरा जूम होंकर ठीक चेहरे के करीब ठहरता है.. और प्रेमिका झूम करके बांहों में.. गोद में चाहे प्रेमिका का सर हो या कैमरा, शोट हमेशा डीप मोड़ में होता है.. कैमरा चलता है.. प्रेमिका मटकती है.. कैमरा सिमटता है.. प्रेमिका महकती है.. कंधे पे रखा कैमरा या कंधे पे प्रेमिका.. दोनों ही एहसास सांस रोंक देने वाले होते है..

और फिर एक और भी तो सिमिलेरिटी है.. दोनों ही सिर्फ उतना सीन दिखाते है जितना दिखाया जाना चाहिए.. कैमरे के पीछे क्या है ? और प्रेमिका के मन में.. ये कोई नहीं जानता.. धोखा कभी भी मिल सकता है.. सावधान!!!



Friday, December 3, 2010

नजूबी...., जो ख्वाब बेचता था


जब रेगिस्तान में धुल भरी आंधियो का दौर चलता था तभी ख्वाब बेचने वाला नजूबी अपने काफिले के साथ नमूदार होता था.. ये काफिला इंसानों का ना होंकर ऊँटो का हुआ करता था.. सबसे आगे ऊँट पर बैठा नजूबी और उसके इशारों पर पीछे चलते ऊँट.. जिन पर ख्वाब लदे होते थे.. कच्चे पक्के ख्वाब.. नजूबी खुद को अल्लाह का बंदा कहता था.. पर उसमे कई एब थे जो अल्लाह की नज़र में नामंजूर होते.. 

नजूबी ख्वाबो के दाम नहीं लेता था.. वो ख्वाब के बदले कुछ भी मांग लेता.. मसलन किसी का घोडा.. किसी का खंजर.. या फिर कच्चे बादाम.. यू कभी किसी को मुफ्त में भी ख्वाब बाँट देता.. 

उस मुल्क के बाशिंदे ये जानते थे कि ख्वाब उनकी ज़िन्दगी के लिए कितने ज़रूरी है.. बिना ख्वाब के ज़िन्दगी ऐसी होती जैसे बिना आँख का घोडा.. जो भाग तो सकता है पर किस तरफ ये देख नहीं सकता.. ख्वाब उनके लिए बिलकुल वैसे ही थे कि जैसा उनका ईमान.. जिसे हर हाल में मुकम्मल रखना है..  अपने अपने तम्बुओ में दिन रात वो ऐसा कुछ जमा करते जाते कि जिसे देकर बदले में बड़ा ख्वाब लिया जा सके.. 

कोई ये चाहता कि इस बार ऊँटो की दौड़ में उसका ऊँट बाज़ी मार ले जाए.. तो कोई ये सोचता कि ऊँट ही मिल जाए तो कैसा हो.. समुन्दर के किस्से तो कई सुने थे पर कोई वहां जाने का ख्वाब देखता तो कोई वहां गए शौहर के लौटने का ख्वाब देखता.. नजूबी हर निगाह में एक ख्वाब छोड़ जाता.. और लोग बस उसी को पूरा करने में जी जान से जुट जाते.. कोई ख्वाब पूरा हो जाता तो कोई नहीं हो पाता.. पर बीते कुछ सालो में कई ख्वाब अधूरे रहे.. बहुत कुछ ख्वाबो के खिलाफ भी हुआ.. लोगो का नजूबी पर से एतबार कम हो गया.. 

और उस रोज़ जब नजूबी के काफिले पर नकाबपोशो ने तेज़ाब बरसा दिया था.. उसके बाद नजूबी कभी लौट कर नहीं आया.. और ना ही फिर किसी ने कोई ख्वाब देखा.. बिना ख्वाबो के दुनिया कुछ अजीब सी हो गयी थी.. अब वहां घुटन होने लगी थी.. लोग चुपचाप अपना काम करते रहते थे.. किसी आँखों में चमक नहीं थी.. ज़िन्दगी जैसे बोझ बन गयी थी.. और कुछ ही वक़्त बाद कयामत का दिन आ गया.. दुनिया ख़त्म हो गयी.. 

सुना है खुदा ने फिर से एक नयी दुनिया बनाने का ख्वाब देखा है... ख्वाब!!