जब रेगिस्तान में धुल भरी आंधियो का दौर चलता था तभी ख्वाब बेचने वाला नजूबी अपने काफिले के साथ नमूदार होता था.. ये काफिला इंसानों का ना होंकर ऊँटो का हुआ करता था.. सबसे आगे ऊँट पर बैठा नजूबी और उसके इशारों पर पीछे चलते ऊँट.. जिन पर ख्वाब लदे होते थे.. कच्चे पक्के ख्वाब.. नजूबी खुद को अल्लाह का बंदा कहता था.. पर उसमे कई एब थे जो अल्लाह की नज़र में नामंजूर होते..
नजूबी ख्वाबो के दाम नहीं लेता था.. वो ख्वाब के बदले कुछ भी मांग लेता.. मसलन किसी का घोडा.. किसी का खंजर.. या फिर कच्चे बादाम.. यू कभी किसी को मुफ्त में भी ख्वाब बाँट देता..
उस मुल्क के बाशिंदे ये जानते थे कि ख्वाब उनकी ज़िन्दगी के लिए कितने ज़रूरी है.. बिना ख्वाब के ज़िन्दगी ऐसी होती जैसे बिना आँख का घोडा.. जो भाग तो सकता है पर किस तरफ ये देख नहीं सकता.. ख्वाब उनके लिए बिलकुल वैसे ही थे कि जैसा उनका ईमान.. जिसे हर हाल में मुकम्मल रखना है.. अपने अपने तम्बुओ में दिन रात वो ऐसा कुछ जमा करते जाते कि जिसे देकर बदले में बड़ा ख्वाब लिया जा सके..
कोई ये चाहता कि इस बार ऊँटो की दौड़ में उसका ऊँट बाज़ी मार ले जाए.. तो कोई ये सोचता कि ऊँट ही मिल जाए तो कैसा हो.. समुन्दर के किस्से तो कई सुने थे पर कोई वहां जाने का ख्वाब देखता तो कोई वहां गए शौहर के लौटने का ख्वाब देखता.. नजूबी हर निगाह में एक ख्वाब छोड़ जाता.. और लोग बस उसी को पूरा करने में जी जान से जुट जाते.. कोई ख्वाब पूरा हो जाता तो कोई नहीं हो पाता.. पर बीते कुछ सालो में कई ख्वाब अधूरे रहे.. बहुत कुछ ख्वाबो के खिलाफ भी हुआ.. लोगो का नजूबी पर से एतबार कम हो गया..
और उस रोज़ जब नजूबी के काफिले पर नकाबपोशो ने तेज़ाब बरसा दिया था.. उसके बाद नजूबी कभी लौट कर नहीं आया.. और ना ही फिर किसी ने कोई ख्वाब देखा.. बिना ख्वाबो के दुनिया कुछ अजीब सी हो गयी थी.. अब वहां घुटन होने लगी थी.. लोग चुपचाप अपना काम करते रहते थे.. किसी आँखों में चमक नहीं थी.. ज़िन्दगी जैसे बोझ बन गयी थी.. और कुछ ही वक़्त बाद कयामत का दिन आ गया.. दुनिया ख़त्म हो गयी..
सुना है खुदा ने फिर से एक नयी दुनिया बनाने का ख्वाब देखा है... ख्वाब!!
जब ख्वाब नहीं होंगे तो जिन्दगी भी नहीं होगी...और आसमानी खुदा को फिर से दुनिया बनाने कि मेहनत करनी होगी....पोस्ट लाजवाब...दिल को जकड लेती है.........
ReplyDeleteबिन रंगों की तितली कैसी होगी... बिन ख़ुशबू के फूल कैसे होंगे... बिन पंखों की परी कैसी होगी... बिन ख़्वाबों के दुनिया कैसी होगी ?
ReplyDeleteख़्वाब तो ख़्वाब होते हैं उनके पूरा होने की शर्त कब होती है...
वाक़ई खुदा भी तो एक ख्वाब ही है, ख्वाबों को पूरा कराने के लिये एक खयाल...दोनो ज़रूरत जीने की...!! एक बार कभी दोनो ही छूट गये थे मुझसे...! मुझे पता है वो मेरी जिंदगी के सबसे कठिन दिन थे...पता नही उन दिनो को जिंदगी कहते भी हैं या नही...!
ReplyDeleteबिना ख्वाब के ज़िन्दगी ऐसी होती जैसे बिना आँख का घोडा.. जो भाग तो सकता है पर किस तरफ ये देख नहीं सकता..
ReplyDeleteलाजवाब पोस्ट...
नीरज
नज़ूबी के काफ़िले पर तेजाब बरसाने की बात पढ़ते हुए पता नहीं क्यों सिहरन सी हुई, जैसे सचमुच किसी ने ख़्वाब खत्म करने की साजिश की हो...👍
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